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पूछा जो उससे रात का वादा किधर गया / सूरज राय 'सूरज'
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पूछा जो उससे रात का वादा किधर गया।
कमबख़्त धूप देख के सीधा मुकर गया॥
यारों ने बिजलियों से की नाहक़ ही दोस्ती
तिनकों का नशेमन था हवा से बिखर गया॥
अपनी दुआओं का तो असर भी अजीब है
जिस-जिस को अपनी उम्र दी वह जल्दी मर गया॥
मिलने से पहले तेरी वफ़ा का था कुछ भरम
सचमुच में तुझसे रूबरू मिलना अखर गया॥
अफ़सोस इस जहाँ ने सराहा मुझे तभी
जिस वक़्त मैं ख़ुद ही की नज़र से उतर गया॥
कुछ नक़्शे-पा दिखे हैं मुझे आँसुओं में आज
लगता है दिल की राह से कोई गुज़र गया॥
यूँ मुझको अगर दिल से निकालोगे, रोओगे
पूछोगे अंधेरों से कि "सूरज" किधर गया॥