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पूछा था, “क्यों करता ऐसा प्रियतम! अमिताभ अंशुमाली / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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पूछा था, “क्यों करता ऐसा प्रियतम! अमिताभ अंशुमाली।
तृण-दल पर पतित तुहिन-सीकर को हर लेता गौरवशाली”।
बोले, “वसुधा से नील गगन का सुन्दरि! अनुपम नाता है।
भूतल-श्रृंगार-श्रमित ही उगता अरुण, अस्त हो जाता है।
भू से जितना लेता उससे भी अधिक लुटाता मोती है।
देखो सागर की साध प्रिये! गागर में कभीं न सोती है”।
गम्भीर जलधि-उर! अति विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥101॥