भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पूछा था रात मैनें ये पागल चकोर से / लक्ष्मीशंकर वाजपेयी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूछा था रात मैंने, ये पागल चकोर से
पैग़ाम कोई आया है, चंदा की ओर से।

बरसों हुए मिला था, अचानक कभी कहीं
अब तक बँधा हुआ है, जो यादों की डोर से।

मुझको तो सिर्फ़ उसकी खामोशी का था पता
हैरां हूँ पास आ के, समंदर के शोर से।

मैं चौंकता हूँ, जब भी नज़र आए हैं कोई
इस दौर में भी, हँसते हुए ज़ोर-ज़ोर से।

ये क्या हुआ है, उम्र के अंतिम पड़ाव पर
माज़ी को देखता हूँ मैं, बचपन के छोर से।