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पूछें तो किससे पूछें आख़िर हुआ है क्या / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

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पूछें तो किससे पूछें आख़िर हुआ है क्या
कोई भी इस शहर में सच बोलता है क्या?

फिर पूछना तू मुझसे पहले तू ख़ुद से पूछ
तू जो भी बोलता है वही सोचता है क्या

बर्ग़-ए-ख़िज़ाँ हूँ तुन्द हवाओं में दर-ब-दर
मेरे शजर से मेरा पता पूछता है क्या

दौर-ए-जफ़ा है फिर भी वफ़ा के सफ़र पे हूँ
मुझको ख़बर है दोस्तो मेरी सज़ा है क्या

तुझको जो धूँढने हों कभी पुरख़ुलूस लोग
बस पूछना वहाँ पे कोई मैकदा है क्या

हर आदमी के लब पे हँसी दिल में चैन हो
ये मुद्दआ नहीं तो फिर मुद्दआ है क्या