पूछें वो काश हाल दिल-ए-बे-क़रार का / मेला राम 'वफ़ा'
पूछें वो काश हाल दिल-ए-बे-क़रार का
हम भी कहें कि शुक्र है पर्वरदिगार का
लाज़िम अगर है शुक्र ही पर्वरदिगार का
फिर क्या इलाज गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार का
सय्याद भी पहुँच गया गुल-ची भी बाग़ में
ऐ हम-सफ़ीर आ गया मौसम बहार का
तदबीर क्या हो सब्र-ओ-शकेब-ओ-क़रार की
वो तुंद-ख़ू है बस का न दिल इख़्तियार का
क्यूँ-कर मिटे नदामत-ए-इज़हार-ए-आरज़ू
आलम नज़र में है निगह-ए-शर्मसार का
क़ानून किस ने बदला है क़ुदरत का शैख़-जी
दारू है अब भी मय ही ग़म-ए-रोज़गार का
उन नामियों के हश्र से इबरत-पज़ीर हो
बाक़ी नहीं निशान भी जिन के ग़ुबार का
रक्खेगा बे-क़रार तुम्हें भी तमाम उम्र
मरना तड़प तड़प के किसी बे-क़रार का
बे-लौस हो हवस से अगर इश्क़ ऐ 'वफ़ा'
है ज़िक्र-ए-यार में भी मज़ा वस्ल-ए-यार का