पूछो मुझसे क्या-क्या देखा उस डॉलर के देश में / उर्मिल सत्यभूषण
पूछो मुझसे क्या-क्या देखा उस डॉलर के देश में
कितना खोया, कितना पाया उस डॉलर के देश में
मालों के हालों में जाकर रौशनियाँ की चौंध में
किसका मैंने दर्द है जाना उस डॉलर के देश में
बाज़रों में जाकर मैंने और बैठकर कारों में
देखा कोई न भूखा नंगा उस डॉलर के देश में
उनकी हंसती आँखों को भीगा पाया तो फिर मैंने
अपने जैसों को पहचाना उस डॉलर के देश मेें
खाते-पीते लोगों के हाथों टकराते जामों में
लगता था कुछ टूटा-टूटा उस डॉलर के देश में
रिश्तों की गर्माहट लेकर आये ये घुलने मिलने
पिघल सका न हिम का रिश्ता इस डॉलर के देश में
कितनी सुख-सुविधायें थी पर मन के कोने खाली थे
खालीपन वो भर न पाया उस डॉलर के देश में
यादें, तड़पाती थीं घर की, घर को लौट नहीं पाये
हर कोई आकर जमा हुआ था उस डॉलर के देश में
ऊपर से हंसता था वो लेकिन अपने जख्मों को
नमक लगाकर चाट रहा था उस डॉलर के देश में
अपने घर में जाकर कहना उर्मिल अपने लोगों से
सचमुच मैंने प्यार है पाया उस डॉलर के देश में।