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पूछ रहे हो क्या अभाव है / शैलेन्द्र

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पूछ रहे हो क्या अभाव है
तन है केवल, प्राण कहाँ है ?

डूबा-डूबा सा अन्तर है
यह बिखरी-सी भाव लहर है,
अस्फुट मेरे स्वर हैं लेकिन
मेरे जीवन के गान कहाँ हैं ?

मेरी अभिलाषाएँ अनगिन
पूरी होंगी ? यही है कठिन,
जो ख़ुद ही पूरी हो जाएँ —
ऐसे ये अरमान कहाँ हैं ?

लाख परायों से परिचित है,
मेल-मोहब्बत का अभिनय है,
जिनके बिन जग सूना-सूना
मन के वे मेहमान कहाँ हैं ?

1945