पूजा-सी पावन लगे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
146
रोम- रोम सुख -कामना ,रोम -रोम से प्यार।
दूर हटाएँगे सभी ,जीवन का अँधियार।
147
पल -पल चारों ओर से,बरसे दिनभर तीर।
ज़हर बुझे थे दे गए, मन को मन भर पीर ।
148
चलो चलें अब तो कहीं,इस दुनिया के पार।
खाली झोली रह गई,छोड़ गए सब यार।।
149
दर्द किसी का पूछना, वे समझें हैं पाप ।
उनको भाता है सदा,देना सबको शाप।।
150
जब तक तन में प्राण हैं,जीवन की है आस।
सभी द्वार पर बाँटना,सब दिन हमें उजास।।
151
जीवन भर देते रहे , तन-मन को सन्ताप ।
इन्हें सगे कहते रहे , कितने भोले आप ! ।
152
नफरत से हरदम भरा, दिल में लाखों दाग।
कहलाता इंसान है,भड़काता है आग।।
153
मन्दिर मैं जाता नहीं , निभा न पाता रीत ।
पूजा-सी पावन लगे , मुझको तेरी प्रीत ।।
154
नारी के आँसू बहें , जलते तीनो लोक ।
नारी की मुस्कान से ,मिटते मन के शोक ..
155
हर पल अर्पित है तुम्हें,मेरा सब अनुराग।
सींच सींचकर नेह से,लिखना मिलकर भाग।।
156
बना रहेगा हर घड़ी,नेह- भरा विश्वास।
माना घर से दूर हो,फिर भी दिल के पास।।
157
नर-नारी के ,उम्र के , तोड़े सारे द्वार।
इन सीमाओं से परे,शोभित मेरा प्यार।।
158
सागर मंथन से मिले, विष ,अमृत की खान,
पाए पर्वत ओट में, मैंने अपने प्रान।
159
जीवन इक तूफ़ान है ,दु:ख है उड़ती धूल ।
झटको चादर गर्द की , खिल जाएँगे फूल ॥
160
मन में ठहरा कौन है , मन के द्वार हज़ार ।
तुम प्राणों में आ बसो , बनकर प्राणाधार ।।
161
पलकों पर तुम रात दिन,उर में हर पल वास।
रोम- रोम में प्यार का,होता है आभास।
162
झरने- सी तेरी हँसी,तिरती हरदम पास।
जीवन के पल चार में,तुम ही मेरी प्यास।।