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पूजा को तो फूल नहीं हैं / सुमित्रा कुमारी सिन्हा
Kavita Kosh से
पूजा को तो फूल नहीं हैं ।
मन्दिर द्वार खड़े युग बीते,
दोनों कर ले रीते-रीते,
किन्तु न पग पीछे को मुड़ते, यह तो उनकी भूल नहीं है ।
सध न सकेगा अर्चन वन्दन,
खिल न सकेगा हिय का नन्दन,
बन्दी हैं अधिकार,प्राप्त पूजा को भी दो फूल नहीं हैं ।
प्राणों में अंगारे बाकी,
श्वासों में फुंकारें बाकी,
सह पाओ तो स्वीकृत कर लो; जीवन है यह, धूल नहीं है ।
जिनसे कोई करे न समता,
जिनको तीखेपन से ममता,
वे फूलों की हँसी सुरक्षित रखनेवाले शूल यहीं हैं ।
पूजा को तो फूल नहीं है ।