भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पूजा -सा था चाहा / भावना कुँअर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


1
उड़ता याद- परिंदा
तम से पंख लिये
कैसे रहता जिंदा ।
2
तुम बरसों बाद मिले
मन के तार छिड़े
सारे ही ज़ख़्म सिले।
3
तुमसे छुप-छुप मिलना
था आभास हुआ
मन - बेला का खिलना।
4
तन्हा इक फूल रहा
मिलकर खुशबू से
करता फिर भूल रहा।
5
 यूँ रूठ चले जाना
है आसान बहुत
 होता कठिन निभाना
6
 जीवन की रीत रही
सच्ची प्रीत सदा
इस मन की मीत रही
7
ये पल भी हरसेंगे
अब जो दूर खड़े
मिलने को तरसेंगे।
8
जिस रोज उठा साया
टूटे ,यूँ बिखरे
फिर होश नहीं आया ।
9
पूजा सा था चाहा
फिर क्या खोट रहा
जो दूर बना साया
10
अब किससे दर्द कहें
बदले फूलों के
काँटों में साथ रहे
11
कैसे ये बात कहें
दरिया ख्वाबों का
हम बिन पतवार बहे।
12
हमसे क्यों लोग जले
घिरकर के ग़म से
हम खुद ही दूर चले
13
कलियाँ तो रोज खिलीं
हमको झलक कभी
तेरी न तनिक मिली
14
चातक किस्मत पाई
प्यार भरी बूँदें
दामन में न समाई।
15
 पास अगर आओगे
कह देते हैं हम-
फिर जा, ना पाओगे।
16
बाहों में यूँ लेना
तेरी फ़ितरत है
मदहोश बना देना।
17
बोलो कब आओगे ?
उखड़ रही साँसें
सूरत दिखलाओगे ?
18
किरणों -संग रवि चला
पंछी शोर करें
मन एकाकी मचला ।
19
थे सब मीत किनारे
जाने फिर कैसे
हम लहरों से हारे
20
पीड़ा भर-भर आती
दस्तक दे दिल पे
देखो अश्क बहाती