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पूनम के रात हे / सुरेन्द्र प्रसाद 'तरुण'
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अंग-अंग सुधियन से मातल
बिहंस रहल जल जात हे
ई पूनम के रात सुहावन
ई पूनम के रात हे ।
रजनी गंधा, रात के रानी
कलयिन जुड़ा बाँध के
आम बगिचवा मे छलिया सब
जीवन योवन हार के
आझ गगन मे चनमा से तो
धोवल चननी मात हे
ई पूनम के रात हे ।
बिहंगम के टोलियन देख के
सब गाबय संगीत हे,
भावुकता से मस्त पुजारी
कवि लिखयन मधु गीत हे,
अग जग मदिरा छ्लक रहल हे
शबनम के बरसात हे
ई पूनम के रात हे ।
दूर-दूर खेतवन कियारी मेँ
झूले धानन के बाल रे
तीसी सारसो के फूलन से
भव्य धरा के भाल रे
सारदीया जीवन मे झूलल
तारन के बरियात हे
ई पूनम के रात हे ।