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पूनम / महेन्द्र भटनागर
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पीपल के पीछे से चुपचुप
झाँक रहा चंदा पूनम का !
इतना भोला है कि उसे यह
ज्ञात न, कोई देख रहा है,
चारों ओर नयी आभा से
पूरित शीतल सिंधु बहा है,
- दूर क्षितिज पर शंकाकुल मुख
- गोरा-गोरा शशि का दमका !
- दूर क्षितिज पर शंकाकुल मुख
इतना व्याकुल है कि अभी से
खोल द्वार नभ के, भरमाया,
काली रात न होने भी दी
सबके सम्मुख बाहर आया,
- और न जाने रोक रहा क्यों
- गिरने वाला परदा तम का !
- और न जाने रोक रहा क्यों