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पूरण होवण री आस / अर्जुनदेव चारण
Kavita Kosh से
थूं ऊभी थिर पूतळी
हंसण
रमण
बधण सूं
कोसां आंतरै
ऊंचायां
किचरीजियोड़ी देह
चाखती खार
सागर रौ
पार होवण रा
सपना पूजती
टाळ में
सिन्दूर घाल
टोळी सूं टळियोड़ी
पूरण होवण री आस
देखती रैवै
काळ अर भरम रौ
बाथेड़ौ
थारी आस
नीं मावै
थारी हथाळियां
नीं चाखै
थारा होठ
उणरौ सुवाद
समदर री छाती
ऊग जावै
भाखर
काळा आखरां रौ
फगत ओ ई है
थारौ अनागत ई ओ है