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पूरब के देश छोड़ो, उत्तर के देश चलो / छोटेलाल दास
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पूरब के देश छोड़ो, उत्तर के देश चलो।
जहाँ बसै पियवा हमार, हे सखिया मोरी॥1॥
जहाँ नहिं पाप-पुन्न, जहाँ नहिं दुख-सुख।
जहाँ मिलै आनन्द अपार, हे सखिया मोरी॥2॥
जहाँ नहिं चन्द्र-भानु, जहाँ नहिं दिन-रात।
जहाँ नहिं देश अरु काल, हे सखिया मोरी॥3॥
जहाँ नहिं भूमि-जल, जहाँ नहिं तेज-वायु।
जहाँ नहिं नखत आकाश, हे सखिया मोरी॥4॥
विषय न इन्द्री कोई, चेतन न जड़ होई।
होइ जे बल के भंडार, हे सखिया मोरी॥5॥
परम सुन्दर अरु, परम चेतन अरु।
होइ जे सत्य के आगार, हे सखिया मोरी॥6॥
जहाँ नहिं बंध कोई, मरण न भव होई।
होइ जे एकरस ‘लाल’, हे सखिया मोरी॥7॥