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पूरा जीवन / असद ज़ैदी
Kavita Kosh से
अब मैं आधा अंधे हो चुके
बूढ़े आदमी की तरह लिखने लगा हूँ
मोटे-मोटे अक्षरों में रही सही बात
चंद हमदर्द सोचते हैं कि नहीं नहीं कि मेरे पास
कहने को अभी बहुत कुछ है
मैंने अब तक कहा ही क्या है
तो सही सोचते हैं ख़ास तो कुछ नहीं कहा
जबकि कहने को बहुत था पर कहकर भी क्या करूँगा
क्योंकि अब ये किसी काम का नहीं
प्रियजन सोचते हैं मैं अपना बचा-खुचा समय
ठीक से गुज़ार जाऊँ यही श्रेयस्कर है
तो वे भूलते हैं कि यह बचा-खुचा समय ही
अब से मेरा सारा जीवन होगा
—
(मार्च 2021)