भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पूरा दुख और आधा चांद / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
पूरा दुख और आधा चांद
हिज्र की शब और ऐसा चांद
इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चांद
मेरी करवट पर जाग उठे
नींद का कितना कच्चा चांद
सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क़ में सच्चा चांद
रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चांद