पूरी हों सारी आशाएँ / गीत गुंजन / रंजना वर्मा
पूरी हो सारी आशाएं यह क्या बहुत जरूरी है ?
धरा और अंबर में देखो अब भी कितनी दूरी है॥
औरों पर उपकार करो पर
पाने की कुछ चाह न हो ,
नहीं यहाँ प्रतिदान मिलेगा
आशा या परवाह न हो।
नहीं हाथ में यहाँ किसी के केसर या कस्तूरी है।
धरा और अंबर में देखो अब भी कितनी दूरी है॥
हृदय पीर बन रहे कलंकित
ऐसा तो उद्योग नहीं ,
यादों में है सिमट गया मन
अब कोई अभियोग नहीं।
खरची नहीं संपदा मन की यह पूरी की पूरी है।
धरा और अंबर में देखो अब भी कितनी दूरी है॥
आँखों में पीड़ा दिल में
तस्वीर दहकती रहती है ,
साँसों में चंदन धड़कन में
पीर महकती रहती है।
अमर मिलन आकांक्षा लेकिन साँसें मिली अधूरी है।
धरा और अंबर में देखो अब भी कितनी दूरी है॥
हमने उसे समझ कर अपना
तन मन जीवन वार दिया ,
सहज समेट सभी को उसने
प्रणय दृष्टि उपहार दिया।
चार कदम भी साथ न आया यह कैसी मजबूरी है।
धरा और अंबर में देखो अब भी कितनी दूरी है॥