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पूरे एक वर्ष / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
सो जाओ
आशाओं
सो जाओ संघर्ष
पूरे एक वर्ष
अगले
पूरे वर्षभर
मैं शून्य रहूँगा
न प्रकृति से जूझूँगा
न आदमी से
देखूँगा
क्या मिलता है प्राण को
हर्ष की शोक की
इस कमी से
इनके प्राचुर्य से तो
ज्वर मिले हैं
जब-जब
फूल खिले हैं
या जब-जब
उतरा है फसलों पर
तुषार
तो जो कुछ अनुभव है
वह बहुत हुआ तो
हवा है
अगले बरस
अनुभव ना चाहता हूँ मैं
शुद्ध जीवन का परस
बहना नहीं चाहता केवल
उसकी हवा के झोंकों में
सो जाओ
आशाओं
सो जाओ संघर्ष
पूरे एक वर्ष !