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पूरे चॉंद की रात है / संगीता गुप्ता
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पूरे चाँद की रात है 
मन में आया 
तुम से बतियाऊँ
या लिखूँ तुम्हें पाती 
फिर यह सोच ठिठक गयी कि 
तुम तक पहुँचते - पहुँचते
षब्द कहीं दूर छिटक जाते हैं 
आसमान में तारों की तरह 
चाँदनी चुपके से, नरम हाथो
मेरे बाल सहला गयी
कमरे के अँधेरे में 
सन्नाटे से लिपटी देर तक 
यह भरम पालती रही कि 
षायद मेरा मौन 
तुम तक पहुँचे 
	
	