भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पूरे चॉंद की रात है / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
पूरे चाँद की रात है
मन में आया
तुम से बतियाऊँ
या लिखूँ तुम्हें पाती
फिर यह सोच ठिठक गयी कि
तुम तक पहुँचते - पहुँचते
षब्द कहीं दूर छिटक जाते हैं
आसमान में तारों की तरह
चाँदनी चुपके से, नरम हाथो
मेरे बाल सहला गयी
कमरे के अँधेरे में
सन्नाटे से लिपटी देर तक
यह भरम पालती रही कि
षायद मेरा मौन
तुम तक पहुँचे