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पूर्णता की छुअन:बेलूर-आवास की एक निजी कविता / शलभ श्रीराम सिंह

प्रतिमा !
अरी ओ प्रतिमा !
बन्द दरवाजा-तुम्हारी दस्तकें !

अब हवा में उड़ा है आँचल तुम्हारा
मुझे माँ की याद आयी है ।

जब रुकी हो
विदा के क्षण-विरम जाना-
याद आया है बहन का ।
और
सिरहाने खड़ी होकर
तनिक मुझ पर झुकी हो जब
पूर्णता की छुअन से
मैं धन्य होकर रह गया हूँ ।

और
जाती बेर
जब देखा तुम्हें तो
लगा खिड़की से सटी
चुपचाप
गीतांजलि खड़ी है
और चारो ओर बिखरी हैं हजारों पुस्तकें ।
बन्द दरवाजा-तुम्हारी दस्तके़ ।
प्रतिमा !
अरी ओ प्रतिमा !