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पूर्वजों को प्रणाम / जनार्दन कालीचरण
Kavita Kosh से
मेरे देश की बंजर धरती को
मधुवन-सा उपवन बनाने वाले
उन शर्त-बन्द पूर्वजों को
मेरा सौ बार प्रणाम ।।
पीठ पर कोड़ों की मार सह-सह कर
रक्त से अपने इस मिट्टी को सींच कर
पत्थर से निर्दय गोरों की जेबें भरकर
जिन पूर्वजों ने हमें दिया है सम्मान
उनको मेरा सौ बार प्रणाम ।।
थे वे दुख के पर्वत वहन करने वाले
खून के घूंट चुप पी जाने वाले
हर प्रलोभन को ठोकर मार कर
जिन पूर्वजों को स्वधर्म का था अभिमान
उनको मेरा सौ बार प्रणाम ।।
जब शायद भाग्य न था साथ उनके
तप्त आंसू की धार पी-पी कर
रामायण की तलवार हाथ लिये
जिन पूर्वजों ने छेड़ा था स्वतंत्रता का संग्राम
उनको मेरा सौ बार प्रणाम ।।