पूर्वपक्ष / रणजीत साहा / सुभाष मुखोपाध्याय
अरे, इन छोकरों को रोको तो ज़रा!
आज तो सारा दिन परेशानी में ही बीता
अब थोड़ी देर को सुस्ता तो लूँ!
क्या, पत्थर की वह पुरानी मूर्ति टूट गयी?
इस्स, सब तोड़ डाला, कुछ भी बाकी न रखा
यह आजकल कैसी उल्टी हवा बह रही है?
थोड़ी देर को सुस्ता लूँ!
आज का सारा दिन बेचैनी में ही बीता।
खेत में रोपा है धान
पोखर में डाला है मच्छी का चारा
पानी और हवा पाकर, ये तेज़ी से बढ़ेंगे-
थोड़ा इन्तज़ार करो।
फिर देख लेना
पेशगी देकर बुला भेजूँगा
नाचने-गानेवालों को।
ओह...आज तो पूरा दिन...बीत गया चिल्लपों में ही...
उनके हाथों में कोई खिलौने...पकड़ा दो
इस शोर-शराबे से तो कान के पर्दे फट गये।
अरे मेरे कलेजे के टुकड़ो,
ज़रा शान्त होकर बैठ जाओ-
उधर साँप् हैं, कनखजूरे हैं
अँधेरे में बाहर मत निकलो।
दोनों पलकें बन्द किये-
अच्छी तरह समझ लेना होगा
बेघर को सहारा देने के लिए क्या किया जाए!
ओह, सारा दिन इसी तरह निकल गया
अब थोड़ी देर आराम कर लूँ!