पूर्व धाम / जतरा चारू धाम / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
प्रथम चलब हम पूब, जगन्नथियाक गीत - मधु कंठ
झारखड बिच बनबासिक परिचय करइत उत्कंठ।।10।।
धुनि महेशवानी तिरहुति पुनि गाबि नचारी गीत
बाबाकेँ चढाय गंगा-जल, पथ धय चलब अभीत।।11।।
असम कामरूपक दूरहिसँ करइत प्रेम प्रणाम
वर्धमान नदियाक साधना प्रति श्रद्धा - सम्मान।।12।।
अंग लगाय वंगकेँ, उत्सुक उत्कल करब प्रवेश
मन पड़ते तखनहु कखनहु कय तिरहुति धनिक सनेस।।13।।
पाथे सठत न पथ, तीर्थक पथिकक सब तरि सम्मान
हमर देश ई अमर, सदावृत चलइछ घर-खरिहान।।14।।
रौदी - शीत, तृषा - वर्षा पथ - पाथर, काँकड़ - पाँक
विजन भयान वनक विच निच-उँच पथ कत सोझो-बाँक।।15।।
दूरहिसँ सागर गरजन धुनि सुनि उछलय मन-प्रान
आँखि जुड़ाइछ बाबाकेर मन्रि फहराय निसान।।16।।
चूमि भूमि, नत चूल चढ़ायब मन्दिर-बाटक धूल
करु न विलम्ब आब बाबा! दर्शन दय हरु उर शूल।।17।।
द्वारि पहुँचि झुकि, भक्त दर्शनी पद-रज तिलक लगैब
कत गोहराय जनम संचित पुन-बल पुनि दर्शन पैब।।18।।
दारु मुरुति श्रीनाथ जगन्नाथक देखब भरि नैन
झाँकी आँकब सुघन मनक पट लिखित रूप विनु वैन।।19।।
अटका अटकि चढ़ाय, नहाय लहरि लय सागर-कूल
जनम-जनम केर अघ-मल मलिन छोड़ायब दाग दुकूल।।20।।
नीलाचल लग सिन्धुक तट पुरिबाक लहरि लहराय
एहन धाम बसि जगन्नाथ शंकर सब लेल बचाय।।21।।