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पूस हे सखि पड़ि गेल फुहार / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पूस हे सखि पड़ि गेल फुहार, भीजि गेल आँचर चीर यो
सगरि रैनि हम बैसि गमाओल, होयत कखन भोर यो
माघ हे सखि जाड़ लगै छै, पिया बिनु जाड़ो ने जाय हो
एहि अवसर मे पिया के पबितहुँ, सतितहुँ हृदय लगाय यो
फागुन हे सखि फगुआ लगै छै, उड़त अबीर गुलाल यो
रंग अतर घोरि कऽ ढ़ारितहुँ, जँ गृह रहितथि नन्दलाल यो
चैत हे सखि फूलल बेली, भ्रमर लेल निज बास यो
सब सखि पहिरय पीअर पीताम्बर, हम धनी गुदरी पुरान यो
बैसाख हे सखि उखम ज्वाला, घामे भीजय शरीर यो
एहि अवसर मे पिया के पबितौं, अँचरे सऽ बेनियां डोलाय यो
जेठ हे सखि बाँस कटबितौं, रचि-रचि बंगला छराय यो
ओहि बंगला मे दुनू मिलि सुतितौं, पुरति छबो मास यो