पूस / रामनाथ पाठक 'प्रणयी'
आइल पूस महीना, अगहन लवटि गइल मुसुकात
थर-थर काँपत हाथपैर जाड़ा-पाला के पहरा
निकल चलल घर से बनिहारिन ले हँसुआ भिनसहरा
धरत धान के थान अँगुरिया ठिठुरि-ठिठुरि बल खात
आइल पूस महीना, अगहन लवटि गइल मुसुकात
ढोवत बोझा हिलत बाल के बाज रहल पैजनियाँ
खेतन के लछिमी खेतन से उठि चलली खरिहनियाँ
पड़ल पथारी पर लुगरी में लरिका वा छेरियात
आइल पूस महीना, अगहन लवटि गइल मुसुकात
राह-बाट में निहुरि-निहुरि नित करे गरीबिन बिनियाँ
हाय! पेट के आग चुरा ले भागल सुख के निनियाँ
पलक गिरत उडि़यात फूस दिन हिम-पहाड़ बड़ रात
आइल पूस महीना, अगहन लवटि गइल मुसुकात
लहस उठल जब गहुम-बूँट रे, लहसल मटर-मसुरिया
बाज रहल तीसी-तोरी पर छवि के मीठ बँसुरिया
पहिरि खेसारी के सारी साँवर गोरिया अँठिलात
आइल पूस महीना, अगहन लवटि गइल मुसुकात