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पृथ्वी उदास है / विवेक निराला
Kavita Kosh से
एक दिन घूमते -घूमते
अचानक पृथ्वी उदास हो गयी
सहम गये ग्रह -उपग्रह -नक्षत्र सब
खगोलशास्त्रियों ने
टेलीस्कोप निकाले
और आसमान ताकते रहे
राष्ट्राध्यक्षों ने
राष्ट्रीय ध्वज झुका लिए
मगर पृथ्वी उदास रही
कवियों ने गीत लिखे
उदासमना पृथ्वी के लिए
चित्रकार उल्लसित पृथ्वी की
विभिन्न मुद्राएं बनाते रहे
नर्तकों ने घुंघरू पाँवों से उतारे
और शताब्दी को
नर शताब्दी की संज्ञा देते हुए
जी भर कर कोसा
फिर भी पृथ्वी उदास रही
पृथ्वी अब भी उदास है
कि राजा जनक के बाद
किसी किसान के हल का फल
किसी घड़े से
टकराया क्यों नहीं?