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पृथ्वी खोजती हो अपना होना / लीलाधर मंडलोई

सदियों से डूबी है पृथ्वी वहाँ
सघन अंधकार में

बहुत नीचे कहीं
थककर लेटा है आज समुद्र
और कुछ मछलियाँ घूमती हैं
छोड़ती प्रकाश रेखाएँ वहाँ

बस उसी समय
हो सकता है पृथ्वी खोजती हो
अपना होना सघन अंधकार मे