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पृथ्वी — 1 / तेजी ग्रोवर
Kavita Kosh से
मेरे कई घरों में से वह एक थी, मेरे कई सूर्यों में से एक
उसके पास था, इस माह उसे सोलह कविताओं में मेरे
पास आना था।
मैंने कई दिन अभाव में जिए थे, कई बाहुल्य में।
वे उन फूलों को दबाकर तेल में बदलते थे, जो फूल सुबह
से शाम तक सूर्य को ताकते थे। इस तरह मेरे कई प्रेम
छूट गए थे, कई इतने कठिन कि मैं झुककर कीड़ों से
पूछती थी।
मैं सच कहूँ तो मोह इतना था कि पीली घास की नोंक
तक में शब्द का लावण्य था।
अन्त भी एक शब्द ही था अन्त में।