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पृष्ठ तो इतिहास के जन-जन को दिखलाए गए / द्विजेन्द्र 'द्विज'
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पृष्ट तो इतिहास के जन—जन को दिखलाए गए
खास जो संदर्भ थे, ज़बरन वो झुठलाए गए
आँखों पर बाँधी गईं ऐसी अँधेरी पट्टियाँ
घाटियों के सब सुनहरे दृश्य धुँधलाए गए
घाट था सब के लिए लेकिन न जाने क्यों वहाँ
कुछ प्रतिष्ठित लोग ही चुन— चुन के नहलाए गए
साथ उनके जो गए हैं लोग उनको फिर गिनो
ख़ुद—ब—खुद कितने गए और कितने फुसलाए गए
जब कहीं ख़तरा नही था आसमाँ भी साफ़ था
फिर परिन्दे क्यों यहाँ सहमे हुए पाए गए
आदमी को आदमी से दूर करने के लिए
आदमी को काटने के दाँव सिखलाए गए
ज़िन्दगी से भागना था ‘द्विज’ दुबकना नीड़ में
मंज़िलों तक वो गए जो पाँव फैलाए गए