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पृष्ठ / मोहन साहिल
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					लिखने के लिए हमेशा नहीं रहते 
एक जैसे विषय 
न हर बार स्याही से लिखे जाते हैं शब्द 
पृष्ठों का बरसों कोरा रह जाना भी 
रखता है कोई अर्थ 
कई बार 
यूँ ही रखे-रखे 
डायरी के कई पन्ने 
खा जाती है दीमक 
या सीलन कर देती है काला 
फिर भी बँधे रहते हैं 
ईबारत  के  बीच 
खाली पृष्ठ 
जीवन के शोक दिवस की तरह।
 
	
	

