भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पेआर के परिभासा / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आंख!
अएना होइअऽ
दुख के/दरद के
पिआर के/नफरत के
लेकिन अप्पन दिल ...
ई त अकेले रहइअऽ हमेसा
धक-धक करइत
एक्कर एगो अलग होइअऽ भासा
ऊ भासा के बूझे वाला
जे होइअऽ
उहेसमा पबइअऽ दिल में
बहुत अन्दर तक।