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पेइचिंग : कुछ कविताएँ-4 / सुधीर सक्सेना
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इस कदर लम्बी है
लम्बी दीवार
कि लुढ़का दो
सूरज के गोले को तो
लुढ़कता चला जाए
वो छह हज़ार मील
कुलाटियाँ खाता
मोड़ों पर उछलता दाएँ-बाएँ
लुढ़कता चला जाए सूर्य
छह हज़ार मील
ग़र ऎसा हो तो
सूर्य लुढ़के
और हमारे सामने हो
दुनिया के इतिहास में अब तक का
अब तक का सबसे दिलचस्प,
सबसे मज़ेदार,
सबसे हैरतअंगेज़ खेल का
अविस्मरणीय नज्ज़ारा।