भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पेइचिंग : कुछ कविताएँ-7 / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
लासानी है
पेइचिंग
आँख में आँसू हों,
दिमाग में चक्रवात,
हृदय में पीड़ा का सैलाब
फिर भी मुस्कराएगा पेइचिंग
चिल्ला जाड़ा और हिम की बारिश में
इसी मुस्कान से गरमाता हुआ अपनी देह,
गोलियों की बौछार में
बांधे इसी मुस्कान का कवच,
मुस्कान का शिरस्त्राण
इसी मुस्कान से अपने व्रणों का उपचार
गो
पेइचिंग न मुस्कुराए तो
देखते-देखते
दुनिया के लिए अज़नबी हो जाए
पेइचिंग का चेहरा।