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पेच / सत्येन जोशी
Kavita Kosh से
डोर ओछी है क लांबी
किनकौ तौ कटणौ ई है
पेच ढील रा है क खंचरा
लोग तौ मांजौ लूटैलाई
पिछतावणौ कैड़ौ
पैच लडावतां लडावतां
मांजौ लूटतां लूटतां
एक दिन तौ कटणौ ई है
कणियां सूं