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पेटू काळ / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आयवै
सालोसाल
धोरा री धरती
काळ रै
जबाड़ै तळै
बापड़ी मुठ्ठी’क धूळ
जाणै ऊंट रै
मूंडै में जीरो ?
क्यां स्यूं धापै
पेटू बिरम राकस ?
पण कर दै
अधमरी
सोनल धूळ नै
आ जाट आळी
गिलगिली,
कोनी आण दै
ऊपरलो पानो
अणधारी हूण !
हुगी अधबूढी
देस री आजादी
कोनी जायो
इण री कूख
हाल इस्यो नखतरी
जको देवै
इण सरब भकसी नै
ललकारी,
अबै तो
लागै’क लिख दी
सदा रै वासतै
इण बाजरियै री
बेकळू रै करम में
बेमाता
फिरती घिरती
मौत री घ्यारी !