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पेट के ख़ाली सफ़े पर ओम् लिखवाओ न अब / पुरुषोत्तम प्रतीक

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पेट के ख़ाली सफ़े पर ओम् लिखवाओ न अब
यार, हमसे पत्थरों को मोम लिखवाओ न अब

आग लिखने से नहीं जलता कभी काग़ज़ मगर
जल रहे हैं लोग उन पर होम लिखवाओ न अब

ज़िन्दगी के रंग भी तो कम नहीं है, दोस्तो
इंद्रधनुषों की जगह पर व्योम लिखवाओ न अब

देह का हर रोम उनकी सोच में है इसलिए
आप उनकी सोच को भी रोम लिखवाओ न अब

रोशनी पीकर अँधेरे जिस नशे में हैं सभी
उस नशे को इस ग़ज़ल में सोम लिखवाओ न अब