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पेट के पचड़े / हरिऔध
Kavita Kosh से
सब बुराई बेइमानी है रवा।
भूख देती है बना बेताब जब।
पापियों को पाप प्यारा है नहीं।
है कराता पेट पापी पाप सब।
मांस खाया पिया हुआ लोहू।
क्या पचाना इसे न प्यारा है।
है कमोरा कपट कटूसी का।
पेट यह पाप का पेटारा है।
है बड़ा जंजाल, है झंझट भरा।
माजरा है मान मटियामेट का।
है कनौड़ा कर नहीं देता किसे।
पेट रखना या रखाना पेट का।
पाप जो प्यारा नहीं होता उसे।
मान, तो पापी कहा खोता नहीं।
वह पचाता तो पराया माल क्यों।
पेट मलवाला अगर होता नहीं।
क्यों पले पीस कर किसी को तू।
है बहुत पालिसी बुरी तेरी।
हम रहे चाहते पटाना ही।
पेट तुझ से पटी नहीं मेरी।
भर सके हो नहीं, भरे पर भी।
कब नहीं हर तरह भरे जाते।
पट सके हो न पाटने पर भी।
पेट तुम से निपट नहीं पाते।