भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पेट के लिए / शरद कोकास
Kavita Kosh से
दाने की खोज में
उड़ते हुए पंछियों के
थक जाते होंगे पंख
अन्न की तलाश में
भटकती हुई चींटियों के
थक जाते होंगे पाँव
चारा ढूँढ़ती मछलियाँ
तैरते-तैरते
थक जाती होंगी
थक जाते होंगे कीट-पतंगे
थक जाती होंगी छिपकलियाँ
थक ही जाता होगा
रोटी के जुगाड़ में
मुँह-अँधेरे निकला
रिक्शेवाला!!