पेट ख़ाली, किसान है शायद / सूरज राय 'सूरज'
पेट खाली, किसान है शायद।
ये विधि का विधान है शायद॥
आज घर सच के बैठ के आया
दर्द का ख़ानदान है शायद॥
पर निकल आए हैं मुझे ज़र के
ये अकेली उड़ान है शायद॥
ये तो दिल है किसी फ़रिश्ते का
शंख के संग अज़ान है शायद॥
कैंसर मज़हबों का है उसको
कोई हिन्दोस्तान है शायद॥
हर चढ़ाई चढ़ी इसी धुन में
इसके आगे ढलान है शायद॥
वक़्त का शाह हूँ यक़ीन हूँ मैं
ये सभी को गुमान है शायद॥
पीठ पर ज़ख़्म, धूल आँखों में
ये मेरी दास्तान है शायद॥
कान दीवार के सुना जबसे
मेरे मुंह में ज़बान है शायद॥
आप कहते हो तो सही होगा
मेरा भारत महान है शायद॥
एक गड्ढा खुदा है मरघट में
कोई ख़ाली मकान है शायद॥
वो समन्दर तो है मगर चुप-चुप
एक बेटी जवान है शायद॥
शेर "सूरज" के पढ़ लिया कीजै
रोशनी की दुकान है शायद॥