भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पेट भूखे करिश्मात करते रहे / सूरज राय 'सूरज'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पेट भूखे करिश्मात करते रहे।
लोग जे बात जे बात करते रहे॥

शब्द अर्थों का आयात करते रहे।
ये करिश्मा इनामात करते रहे॥

आँख को नींद को मात करते रहे।
रात भर ज़ख़्म उत्पात करते रहे॥

आप से भी करे वक़्त वह ही सुलूक
आप जैसा मेरे साथ करते रहे॥

कुछ पटाखों ने शमशां शह्र को किया
लोग बारात-बारात करते रहे॥

अक्स किसका है खामोश रहता है जो
आईने-आईने बात करते रहे।

अब्र हो तुम तुम्हें पास पानी का हो
तुम शरारों की बरसात करते रहे॥

बात करने का आए हुनर, इसलिए
चुप्पियों से मुलाक़ात करते रहे॥

झूठ से हमको नफ़रत है सच है यही
वो तो मजबूर हालात करते रहे॥

सैकड़ों घर हैं मुजरिम की फेहरिस्त में
साज़िशें तो मकानात करते रहे॥

हमने "सूरज" को इल्ज़ाम हरदम दिया
वो तो साए थे जो घात करते रहे॥