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पेट मैंने उसके एहसास-ए-सख़ावत का भरा / ओम प्रकाश नदीम
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पेट मैंने उसके एहसास-ए-सख़ावत<ref>उदारता का भाव</ref> का भरा।
तब बमुश्किल उसने मेरी चाह का कासा<ref>कटोरा</ref> भरा।
अब भी गुंजाइश बहुत है तेरे मेरे दरमियाँ,
निस्फ़<ref>आधा </ref> ख़ाली तू भी है और मैं भी हूँ आधा भरा।
खा रहा हूँ एक मुद्दत से मैं रिश्तों के फ़रेब,
इन सराबों<ref>मृग मरीचिका</ref> से अभी तक दिल नहीं मेरा भरा।
हैसियत तो मैकदे से कम न थी उसकी मगर,
जब उसे परखा गया मुश्किल से पैमाना भरा।
ग़र्क़ होने की तमन्ना फिर से जागी थी मगर,
फिर न वो मौसम ही पलटा और न वो दरया भरा।
हमने अपने ज़र्फ़ का मेयार रक्खा बरक़रार,
जितना ख़ाली हो गया उतना ही दोबारा भरा।
शब्दार्थ
<references/>