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पेड़ों की छतरी के नीचे / शकुंतला कालरा

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आओ, उपवन देखो नानी,
रिमझिम-रिमझिम बरसे पानी।

पेड़ों की छतरी के नीचे,
बैठे पंछी आँखें मीचे।

गरज-गरज जब बादल आते,
सुन-सुन गर्जन पंख हिलाते।

चमके बिजली, डर-डर जाते,
झप-झप, झप आँखें झपकाते।

जब भी नीचे दाना पाते,
चुग-चुगकर सारा खा जाते।

धप-धप करते मेंढक आएँ,
टर-टर, टर-टर शोर मचाएँ।

नानी बोली, अजब नज़ारा,
महक रहा है उपवन सारा।

सचमुच शोभा अजब निराली,
छाई सावन की हरियाली।

नीले-हरे रंग फैलाए,
मोर मोरनी को हरषाए।

आओ मिलकर झूलें झूला,
बच्चों का मन फुला-फुला।