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पेड़-१ / ओम पुरोहित ‘कागद’
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पेड़ !
अब तुम
एक मेज हो ।
अब तो तुम
रूप नहीं बद्ल सकते
नहीं ले सकते विस्तार
तो भी
हमें
डर क्यों है ?
हमारा डर
कहीं
तुम्हारा
फ़ल तो नहीं ?
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"