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पेड़ और मनुष्य / बाजार में स्त्री / वीरेंद्र गोयल
Kavita Kosh से
जो सह नहीं पाता
हवा का दाव
वो टूट जाता है
जो सह नहीं पाता
खून का दबाव
वो फूट जाता है
पेड़ और मनुष्य में
यही नाता है
झुकते हैं जो
बच जाते हैं
तनकर खड़े हुए
कट जाते हैं
विरोध से, विरुद्ध से,
अपना ही क्षय होता है
पेड़ हो या मनुष्य
अपना ही जीवन खोता है
देते रहोगे अगर
फलते-फूलते रहोगे।
खींच लेने पर हाथ
हवा में झूलते रहोगे।