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पेड़ पर वार / सुदर्शन वशिष्ठ
Kavita Kosh से
माँस मज्जा
नसें और हड्डियाँ चटकाते
वार पर वार
सहता है पेड़।
जानता है पेड़
कि लोहे की कुल्हाड़ी हो
या दाँतो वाला आरा
काठ बिना
लोहे का टुकड़ा
हथियार
ठण्डा और निष्प्राण।
नहीं डगमगाता पेड़ भीषण अंधड़ से
काटती हैं उसे अपनी ही
टहनी की धार।
न बोलता है
न सिसकता है
सहता है वार पर
गिरने पर
चिघाड़ता है बस एक बार
तहस नहस करता है आस-पास
घटोत्कच की तरह
चतुर कर्ण बच निकलता है बार-बार!