भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पेड़ / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
जंगल में जिए
और जंगल में पले हुए,
जंगल को घना
और जंगल को बड़ा किए
जंगल को जीते हैं
जंगल में चारों ओर
जंगल में खड़े हुए
जंगल में हरे हुए
जंगल में हर्ष के हजार हाथ
व्योम तक उठाए हुए
जंगल के जीवन को
काव्यमय बनाए हैं
आदमी को जंगल में
आदमी बनाए हैं
रचनाकाल: १९-०६-१९७६, मद्रास