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पेड़ / राजेश श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
कल फिर
कुछ सफेदपोश हाथ
वृक्षारोपण अभियान पर जाएंगे
और आस-पास
उमड़ आए/गन्देू/भूखे/नंगों के हुजूम
और चंद चाटुकार हथेलियों की गड़गड़ाहट के बीच
रोपेंगे एक नन्हान/ नाजुक-सा पौधा
चारों तरफ से/कंटीले तारों से घिरा हुआ।
बड़े-बड़े रक्तिम अधरों पर
सबके हिस्सेर की मुस्काोन लिए
देश के दो आधार स्तकम्भ पांव
मुड़ेंगे वापस
मगर/ठिठकेंगे फिर/यकायक
किसी शीशम/बरगद/चीड़ या चंदन के समक्ष
और अगले दिन
वर्षों से/जमीन की तपती श्वाकसों को
शीतल छाँह प्रदान करने वाले/इनमें से ही
किसी एक वृक्ष को/होना ही पड़ेगा
उनके ड्राइंगरूम का शोकेस/कुर्सी या मेज
या फिर
उसी कुल्हागड़ी का हत्थाम
जिससे वर्षों से/ यूँ ही
कटता चला आया है पेड़।