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पेड़ : हम - दो / गुलाब सिंह
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(पूजा से अंतिम पड़ाव तक)
छाया के छतनार हरे
सपनों की खातिर
हम अँखुआए।
बीज कलम
उगने का बल था
चिकने पत्ते-सा
हर कल था
पीपल नीम एक में निकले
कड़ुए रहे
न मृदु हो पाए।
धूप-हवा-जल
रुके हुए हम
निष्फल नीचे
झुके हुए हम
मिट्टी मलती पाँव विकल
अम्बर उदास
माथा सहलाए।
मलयागिरि
चन्दन के किस्से
विष हरना था
अपने हिस्से
पूजा से अंतिम पड़ाव तक
घिसे गए
या गए जलाए।