भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पेन्टिंग / गुलज़ार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात कल गहरी नींद में थी जब
एक ताज़ा सफ़ेद कैनवास पर
आतिशी लाल सुर्ख रंगों से
मैंने रोशन किया था इक सूरज

सुबह तक जल गया था वो कैनवास
राख बिखरी हुई थी कमरे में मेरे...!