भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पैंताळीस / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओळै-दोळै
झांझरकै-झांझरकै ई
काट आवै चक्कर अेक गळियां रो
-सबद
सांवरो देवण नै पतियारो

कारो!!
मचज्यै चौरासी री जूण मांय
सांस बापरै मरतोड़ी हूण मांय
सूरज बणज्यै
-समद।